Monday, May 11, 2009
श्रेय मुदगल कक्षा नौ 'ब'
जीवन के इस काल में
समय की तेज़ चाल में
कार्य सभी को निभाने हैं अनेक
रास्ते अलग मगर लक्ष्य है एक ।
इस तेज़ सी रफ़्तार में
समय की बहती धार में
दौड़ता चला जा रहा है इन्सान
चेहरे पैर हैं तनाव के निशान ।
हँसना हंसाना मुश्किल हो चला है
हर कोई सोचता अपना भला है
दो बोल प्यार या दुलार के
बुलाता नहीं कोई इसे पुकारके ।
राह में हम जो मुस्कुराते चलेंगे
तो काटों के बीच फूल खिलेंगे।
नम्रता से हम जो पेश आयेंगे
तो निराश से आगे बढ़ पाएँगे
इंसान ही इन्सान की परवाह जब कर सकेंगे
संसार में संसार की तरह मिल के रह सकेंगे ।
शुभ लखवारा कक्षा सात 'अ'
चार्ल्स बैबेज़ के
दिमाग तुम्हारा कमाल
कंप्यूटर तुम्हारा नाम
प्रश्न सुलझाना तुम्हारा काम।
जोड़, घटाना, गुणा, भाग
या इनका कोई मेल
झटपट करते हल इनको
सब बाएं हाथ का खेल ।
समय गवांते वो बच्चे
जो खेले तुम से खेले
समय बचाते वो बच्चे
जो तेरा उचित प्रयोग करे।
हिमांगी तिवारी कक्षा आठ 'स'
मैं सबसे छोटी होऊं
तेरी गोद में सोऊँ
तेरा आँचल पकड़कर
फ़िर सदा माँ तेरे साथ
कभी न छोडूँ तेरा हाथ।
बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे चलती है मात
हाथ पकड़कर फ़िर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन रात ।
अपने कर से खिला, धुला मुख
धूल पोंछ सज्जित केर मात
थमा खिलोने नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात।
ऐसी बड़ी न होऊं मैं
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं
तेरे आँचल की छाया में
छिपी रहूँ गोद निर्भय
कहूँ दिखा दे चंद्रोदय ।
क्षितिज नीखरा कक्षा तीन 'स'
एक छोटा बच्चा अपनी माँ से नाराज़ होकर चिल्लाने लगा, "मैं तुमसे नफरत करता हूँ। मैं तुमसे नफरत करता हूँ। " पिटने के डर से वह घर से भाग गया और पहाड़ियों के पास जाकर चीखने लगा । ' मैं तुमसे नफरत करता हूँ । मैं तुमसे नफरत करता हूँ ' और वही आवाज़ गूंजी , "मैं तुमसे नफरत करता हूँ "। यह ज़िन्दगी में पहली बार था जब उसने कोई गूंज सुनी थी । वह डरकर अपनी माँ के पास गया और बोला - "घाटी में एक गन्दा बच्चा है जो चिल्लाता है, मैं तुमसे नफरत करता हूँ" । उसकी माँ सारी बात समझ गई और उसने अपने बेटे से कहा कि वह पहाड़ी पर जाकर फ़िर चिल्लाकर कहे - मैं तुम्हें प्यार करता हूँ । बच्चा गया और चिल्लाया - " मैं तुम्हें प्यार करता हूँ । " वही आवाज़ गूंज गयी । इस घटना से बच्चे को सीख मिली ।
हमारा जीवन एक गूंज की तरह है -हम जो देते हैं वही हमें वापस मिलता है ।
बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा है - जब आप दूसरों के लिए अच्छे बन जाते हैं तो ख़ुद के लिए और भी बेहतर बन जाते हैं ।
सनम लखवारा कक्षा दस 'अ'
पीने के लिए कोई चीज़ है तो - क्रोध
लेने के लिए कोई चीज़ है तो - ज्ञान
देने के लिए कोई चीज़ है तो - दान
कहने के लिए कोई चीज़ है तो - सत्य
दिखाने के लिए कोई चीज़ है तो - दया
छोड़ने के लिए कोई चीज़ है तो - अंहकार
त्यागने के लिए कोई चीज़ है तो - ईर्ष्या
संग्रह के लिए कोई चीज़ है तो - विद्या
रखने के लिए कोई चीज़ है तो - मान
धारण करने के लिए कोई चीज़ है तो - संतोष ।
ध्वनि कापता कक्षा आठ 'ब'
हम भारत के भरत खेलते
शेरों की संतान से ,
कोई देश नहीं दुनिया में
बढ़कर हिंदुस्तान से ।
इस मिटटी में पैदा होना
बड़े गर्व की बात है ,
साहस और वीरता अपने
पुरखों की सौगात है।
बड़ी- बड़ी ज्वाला से
कम नहीं चिंगारियां,
कांटे पहले फूल बाद में
देती हैं फुलवारियां ।
कभी दहकते कभी महकते
जीते मरते शान से ,
कोई देश नहीं दुनिया में
बढ़कर हिन्दुस्तान से।
अमृता कक्षा सात 'ब'
काले घन घेर रहे हैं सूरज दादा आपको
टप-टप बूंदों के गिरने की ज़रा आवाज़ सुनो
डरा रही है, गड़-गड़ बिजली की आवाज़ लो
खुशी से मोर नाच रहे हैं ज़रा देखो ।
किसानो , सुनो हरियाली फैल रही यहाँ तो
छोटी-छोटी नावों को जाते हुए देखो,
सात सुंदर रंगों को आसमान में देखो,
इंतज़ार रहेगा सावन के महीने का हम सबको।
Thursday, April 16, 2009
Supratha Somanathan X 'A'
THE VANISHING NATURE
I was going alone in a field,
thinking about the harvest and yield.
Nowadays I can’t see the sand;
where we played with fond.
The grass was so green as never,
I worry that; I miss it for ever.
Pastures and land so pretty,
would not be seen after years fifty.
The rivers so cool and fast,
don’t know where it went past
The air too cool and clean,
where it could be seen?
The flowers gave smell so sweet
now without smell and colour; who will greet?
Animals: Elephant, deer and lions,
will soon be extinct from us fine.
Even the laughs and smiles;
of all the humans went far miles
Oh God! give me back my nature,
I will care it well for future.
Rohit R. Namboothiry IX 'B'
‘X,Y,Z’- THAT’S ALL ABOUT!
Once in a while one might think,
What is life all about?
It is all about ‘X’ periences and dream ‘Z’,
Which can’t be left out!
Thus life starts with ‘X’ and ends in ‘Z’,
And thinking about the ‘Y’ in between, may blow up your head!
What’s this ‘Y’ all about?
Expand ‘Y’ to get ‘why’!
And that’s all about!
The ‘why’ is a question mark in our
Life which keeps us running!
The question mark hides a lot of answers,
Which are beyond discovering!
And once you uncover the ‘?’,
Then you would be astonished with a ‘!’
This ‘!’ leads you to your dream ‘Z’ and
Then back to your ‘X’periences.
There we came all the wayback
from where we had begun!
One might ask, what is this all about
Then, I would say, this is all life is about!
Ramanath -V
EXAMINATION
When you sit for an examination,
it seems you’re fighting for the nation!
Your palms are sweaty, your eyes see double,
You know then that you are in trouble!
When the questions come in front of you,
You wish you could cry Boo Hoo !!
The English paper- it’s full of questions,
You wish you had learnt prepositions;
And done your long dash impositions!
The science paper –its divided into three,
Physics, Bio and Chemist—tree.
The questions go on till infinity…….
The Maths paper- it’s made for a brainiac,
Designed to make you a mental maniac!
The social science is full of facts,
Reminds you of chasing rats!
The French paper-you think is easy,
But makes your head go perfectly greasy!
After your exams, you think you’re free;
But the teachers cut you to pieces three.
Your marks-they make see stars
You wish tat you could fly to Mars.
But the worst part- here it comes!
The final exams are yet to come.
Marwah VII 'A'
LARK
I am high up in the clouds, the wind is rushing by
I am high soaring through the air, up to the sky
Towns are far below, where people come and go
It’s better being here up high
People call me a lark, that’s a nice name
I fly to other lands and come back again
If I stay too long, the weather gets too cold
I need the sun and I don’t like the rain
I make my nest in
I fly across the land and sea
It’s a deep blue sea
I make my nest in the trees near the sand
Then I come and go I am completely free
Why don’t you come too, up in the sky?
Are you happy on the land? It is better up high!
Come up here with me, there is so much to see
Do not stay down there, come up and fly.
Sanam Lakhwara XI
THE PARADOX OF OUR AGE
We have bigger houses and smaller families;
More conveniences,
but less time.
We have more degrees,
but less common sense.
More knowledge,
but less judgements.
More experts, but more problems
More medicines but less good health.
We’ve been all the way to Moon and back,
But have trouble crossing the streets to meet the new neighbour.
We have built more computers to hold
more information, to produce more copies than ever,
But have less communication;
we have become long on quantity,
but short on quality.
These are times of fast food and slow digestion,
Tall men and short character,
Steep profits and shallow relationships,
It is time when there is much in the window,
and nothing in the store room.
S. Suprabha X'A'
GOD’S GIFT FOR US
God has given us beautiful lips,
To open it only for good tips
He has given us wonderful eyes:
To be like the melting ice:
Melting during worries and also
Freezing during the hurdles.
He has granted us with many things:
To make us fly with our colourful wings