Monday, May 11, 2009

श्रेय मुदगल कक्षा नौ 'ब'

नम्रता
जीवन के इस काल में
समय की तेज़ चाल में
कार्य सभी को निभाने हैं अनेक
रास्ते अलग मगर लक्ष्य है एक

इस तेज़ सी रफ़्तार में
समय की बहती धार में
दौड़ता चला जा रहा है इन्सान
चेहरे पैर हैं तनाव के निशान

हँसना हंसाना मुश्किल हो चला है
हर कोई सोचता अपना भला है
दो बोल प्यार या दुलार के
बुलाता नहीं कोई इसे पुकारके

राह में हम जो मुस्कुराते चलेंगे
तो काटों के बीच फूल खिलेंगे।

नम्रता से हम जो पेश आयेंगे
तो निराश से आगे बढ़ पाएँगे
इंसान ही इन्सान की परवाह जब कर सकेंगे
संसार में संसार की तरह मिल के रह सकेंगे

9 comments:

अभिषेक मिश्र said...

अच्छी कविता, स्वागत.

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

good poems boys,keep it up. my blessings and best wishes
dr.bhoopendra

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर रचना है...........भविष्य की और देखती हुयी........
स्वागत है आपका ब्लॉग जगत में

Sanjay Grover said...

हुज़ूर आपका भी ....एहतिराम करता चलूं .......
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)

पंडितजी said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है

रवि कुमार, रावतभाटा said...

अनोखा प्रयास...
बच्चों को बधाईयां दें.....

दिल दुखता है... said...

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sachchi suchchi bat, narayan narayan

Unknown said...

aapka swagat hai