नम्रता
जीवन के इस काल में
समय की तेज़ चाल में
कार्य सभी को निभाने हैं अनेक
रास्ते अलग मगर लक्ष्य है एक ।
इस तेज़ सी रफ़्तार में
समय की बहती धार में
दौड़ता चला जा रहा है इन्सान
चेहरे पैर हैं तनाव के निशान ।
हँसना हंसाना मुश्किल हो चला है
हर कोई सोचता अपना भला है
दो बोल प्यार या दुलार के
बुलाता नहीं कोई इसे पुकारके ।
राह में हम जो मुस्कुराते चलेंगे
तो काटों के बीच फूल खिलेंगे।
नम्रता से हम जो पेश आयेंगे
तो निराश से आगे बढ़ पाएँगे
इंसान ही इन्सान की परवाह जब कर सकेंगे
संसार में संसार की तरह मिल के रह सकेंगे ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
9 comments:
अच्छी कविता, स्वागत.
good poems boys,keep it up. my blessings and best wishes
dr.bhoopendra
सुन्दर रचना है...........भविष्य की और देखती हुयी........
स्वागत है आपका ब्लॉग जगत में
हुज़ूर आपका भी ....एहतिराम करता चलूं .......
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
अनोखा प्रयास...
बच्चों को बधाईयां दें.....
हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....
sachchi suchchi bat, narayan narayan
aapka swagat hai
Post a Comment